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icon-blog By - 19 Mar 2024

Leucorrhoea/ White discharge

ल्यूकोरिया / श्वेत प्रदर (Leucorrhoea/ White discharge)

ल्यूकोरिया को श्वेत प्रदर (White discharge) के रूप में भी जाना जाता है। यह एक प्रकार से योनि स्राव का प्रतीक होता है। देखा जाएं तो विभिन्न प्रकार के प्रजनन चरणों में महिलाओं के लिए यह एक सामान्य अनुभव होता है। आयुर्वेद में इसके लिए विशेष तौर पर "श्वेत प्रदर" (Shweta Pradar) शब्द का प्रयोग किया गया है। महिलाओं की इस स्थिति को आयुर्वेद के अंतर्गत शारीरिक और रोग संबंधी अवस्थाओं में विभाजित किया गया है। इसका गहन विश्लेषण भी आयुर्वेद के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है। 

अवलोकन (Overview)
सन 2022 के एक रिसर्च हुई थी जिसमे यह पाया गया था कि ल्यूकोरिया या श्वेता प्रदर बीमारी से 66.9% महिलाएं पीड़ित है। इसकी गंभीरता को आप ऐसे समझ सकते है कि 23 से 32 वर्ष की आयु की 48% महिलाओं को यह प्रभावित कर रही है। निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति में रहने वाली महिलाओं में इसकी व्यापकता अधिक तकरीबन 74 % तक देखी गई है। इसके अलावा मध्यम सामाजिक-आर्थिक वर्ग में 74.4% महिलाओं में इसकी व्यापकता देखी गई है। पर्यावरण से सम्बंधित कारकों से भी इस बीमारी में काफी बढ़ोतरी देखी गई है। 

ल्यूकोरिया को समझें (Understanding Leucorrhoea)
फिजियोलॉजिकल ल्यूकोरिया मासिक धर्म चक्र, गर्भावस्था या यौन उत्तेजना के दौरान योनि स्राव को संदर्भित करता है। यह योनि को साफ व चिकनाई युक्त रखने में सहायक होता है। युवा लड़कियों के लिए यह यौवन की शुरुआत का भी संकेत हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ पैथोलॉजिकल ल्यूकोरिया इन्फेक्शन, सूजन या ट्रामा के परिणामस्वरूप होता है। इसके लक्षणों में प्रमुख रूप से खुजली, जलन, दर्द व गंध होते है। डिस्चार्ज का रंग अगर पीला, हरा या खूनी रंग में बदलता है तो यह काफी चिंताजनक हो सकता है।

दोष असंतुलन पर आयुर्वेदिक परिप्रेक्ष्य (Ayurvedic Perspective on Dosha Imbalance)
आयुर्वेद के अंतर्गत प्रमुख दोषों के आधार पर ल्यूकोरिया को विभाजित किया गया है।
वातज (Vataj): इसमें पेल्विक और पीठ के निचले हिस्से में दर्द के साथ पतला झागदार स्राव होता है।
पित्तज (Pittaja) : इसमें विशिष्ट प्रकार की गर्मी और दुर्गंध के साथ पीले-हरे रंग का स्राव होता है। इसमें सूजन और जलन का भी अनुभव होता है।
कफज (Kaphaja): यह एक ठंडा, गाढ़ा और सफेद स्राव होता है जिसमें आमतौर पर कोई गंध नहीं होती है।
त्रिदोषज/संनिपतज (Tridoshaja/Sannipataja): इसमें सभी तीनों दोषों के मिश्रित लक्षण होते है।

आयुर्वेद के अनुसार ल्यूकोरिया का मुख्य कारण कफ और वात दोष में असंतुलन का होना होता है।
इसके अनेक अन्य कारक भी है जैसे आहार का उचित न होना, रहने की जगह का अच्छा न होना, हार्मोनल गड़बड़ी का होना, संक्रमण और क्रोनिक बीमारियां आदि शामिल है।
 

लक्षण (Symptoms)
आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि अनेक महिलाओं को बार-बार सफेद या पीले रंग का स्राव हो सकता है जिसमे से हल्की दुर्गंध भी आ सकती है। जबकि कुछ महिलाओं  के पेट या पीठ के निचले हिस्से में दर्द, सिर दर्द, मासिक धर्म में ऐंठन, बार-बार पेशाब आना, सांस फूलना, अपच और कमर में दर्द की शिकायत हो सकती है।

विचार करने योग्य कारक (Factors to consider)
इसमें आहार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खट्टे या मसालेदार खाने के अधिक सेवन से आंतरिक संतुलन बिगड़ सकता है। इसी प्रकार से लगातार शारीरिक और भावनात्मक तनाव का होना, अस्वास्थ्यकर यानी अन्हेल्थी प्रथाएं और नम वातावरण में रहने से इसकी स्थिति और भी अधिक बिगड़ सकती है। हार्मोनल असंतुलन, बार-बार गर्भपात कराने और अंतर्निहित बीमारी भी इसमें योगदान दे सकती है।
 

हाल ही में हुई रिसर्च से संकेत मिलें है कि संक्रमण, जलन, हार्मोनल परिवर्तन, गर्भाशय ग्रीवा से संबंधित समस्याएं और गर्भावस्था से संबंधित स्थितियां पैथोलॉजिकल ल्यूकोरिया का कारण बन सकती है। ऐसे मामलों में डॉक्टर गर्भाशय ग्रीवा से सम्बंधित समस्याओं वालों रोगियों को विशेष रूप से जांच कराने की सलाह देते है।
 

आयुर्वेदिक प्रबंधन (Ayurvedic Management)
आहार में परिवर्तन (Dietary Changes): मसालेदार, तैलीय यानी ऑयली और जंक फूड का प्रयोग न करें। आसानी से पचने योग्य खाद्य पदार्थों का सेवन करें। आहार में फलों और सब्जियों का सेवन अधिक करें।
लाइफ स्टाइल में परिवर्तन : आसपास का माहौल स्वच्छ बनाए रखें। देर तक जागने, अत्यधिक शारीरिक परिश्रम करने और तनाव से बचने की कोशिश करें।

हर्बल अनुशंसा (Herbal Recommendation)
अशोक(Ashoka): यह महिलाओं के हार्मोन को संतुलित करने में मदद करता है।
लोध्र (Lodhra): यह प्रजनन टॉनिक के रूप में कार्य करता है। कफ दोष को सामान्य करता है और प्रदार (Pradara) के लक्षणों का उपचार करता है।

शिवलिंगी (Shivlingi) : यह एक प्रजनन टॉनिक के रूप में कार्य करता है और इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-फंगल, रोगाणुरोधी, एनाल्जेसिक, एंटी हाइपरलिपिडेमिक और एंटीपयरेटिक गुण होते है।
हरिद्रा (Haridra): इसमें जीवाणुरोधी और सूजन-रोधी गुण होते है।
 
हमारे उत्पादों की सामग्री और वह कैसे काम करते है (Ingredients of our products and how our product works)
1. लोध्र  (Lodhra): यह जड़ी-बूटी यानी हर्ब्स शक्तिशाली रोगाणुरोधी और कसैले गुण कफ दोष को संतुलित करने में सहायता करती है। प्रदार (Pradara) के लक्षणों को प्रभावी ढंग से संबोधित करती है।
गुण (Properties) - रूक्ष, लघु, रस (स्वाद) - कषाय, वीर्य (शरीर पर प्रभाव) - शीत, विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव) – कतु।
 

दोषों पर प्रभाव - दूषित वात और पित्त दोष को शांत करता है। 
2. अशोक (Ashoka): यह गर्भाशय को मजबूत करता है और डिम्बग्रंथि (ovarian) फंक्शन्स को उत्तेजित करता है। हार्मोन को विनियमित करने में मदद करता है। पेट दर्द और संक्रमण को कम करता है।
3. हरिद्रा (Haridra): हरिद्रा एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-आर्थराइटिस, एंटी- अस्थमैटिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-कैंसर, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुणों के रूप में काम करता है। यह हार्मोनल असंतुलन को भी संतुलित करता है।
गुण (Properties) - रूक्ष, रस (स्वाद) - कटु, वीर्य (शरीर पर प्रभाव) - उष्ण, विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव) - तीखा और गर्म।
दोषों पर प्रभाव - वात और कफ दोष को शांत करता है। 
4. नीम (Neem): नीम एक बेहतरीन दर्द निवारक के रूप में काम करता है। नीम में रोगाणुरोधी, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण होते है।
 

दोषों पर प्रभाव - खराब पित्त दोष को शांत करता है। 
गुण (Properties) - लघु, रूक्ष, रस (स्वाद) - तिक्त, कषाय, वीर्य (शरीर पर प्रभाव) - शीत, विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव) - कटु। 
5.शिवलिंगी (Shivlingi): यह गर्भाशय की टॉनिक के रूप में कार्य करता है। बांझपन से पीड़ित महिलाओं में गर्भधारण की संभावना में सुधार करता है। अंडे की गुणवत्ता को बढ़ावा देता है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-फंगल, एंटी माइक्रोबियल, एनाल्जेसिक, एंटी हाइपरलिपिडेमिक और एंटीपयरेटिक गुण होते है।
 

दोषों पर प्रभाव - खराब कफ दोष को शांत करता है।
गुण (Properties) - लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, रस (स्वाद) - कटु, तिक्त, वीर्य (शरीर पर प्रभाव) - उष्ण, विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव) - कटु। 

इसके अलावा भी हमारे 29 हर्ब्स है।    

हमारी जड़ी-बूटियां यानी हर्ब्स 100% लाभदायक होती है। इन हर्ब्स का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है। यह उपचार का कम से कम जोखिम के साथ स्थाई समाधान सुनिश्चित करती है। आप हमारे आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से पहला परामर्श निःशुल्क लें सकते है। हम आपके शरीर के प्रकार के आधार पर एक आहार निर्धारित करते है। आपकी लाइफ स्टाइल में क्या कुछ परिवर्तन करने की ज़रूरत है उस बारे में भी हम आपको बताते है। उपचार के दौरान हमारे विशेषज्ञों का समर्थन आपको मिलता रहेगा।

ल्यूकोरिया के उपचार के लिए आयुर्वेदिक उपचार (Ayurvedic Therapies for treating Shweta Pradar)

-         योनि प्रक्षालन (Yoni Prakshalan): यह योनि की सफाई की दवा है।

-         पिचू (Pichu): यह एक औषधीय तेल है जो स्थानीय अनुप्रयोग के लिए तेल या घी में भिगोया हुआ तंपन (tampon) होता है ।


-         योग और प्राणायाम (Yoga and Pranayama): भ्रामरी, प्राणायाम, शलभासन और भुजंगासन जैसे अभ्यास फायदेमंद हो सकते हैं।

रोकथाम (Prevention) :
अच्छी प्रकार से स्वच्छता बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है।
संतुलित आहार लेना ज़रूरी है।
नियमित रूप से व्यायाम करना और योग करना हार्मोनल संतुलन में मदद कर सकते है।
सिंथेटिक अंडरगारमेंट्स से बचना और कॉटन का इस्तेमाल करना भी लाभदायक हो सकता है।

सफलता दर (Success Rate)
आयुर्वेद में 99 प्रतिशत सफलता दर दी जाती है। आमतौर पर सफलता की यह दर स्वच्छता जैसे अन्य कारकों के आधार पर अलग-अलग हो सकती है। यदि किसी महिला को सर्जिकल प्रक्रिया से गुज़ारना पड़ा है या कोई महिला किसी अन्य बीमारी से पीड़ित है तो ऐसी स्तिथि में सफलता दर अलग-अलग हो सकती है।
 

उपचार के बाद क्या उम्मीद करें? (What to expect after treatment?)
- किसी प्रकार का सफेद स्राव या दुर्गंध नहीं आती है।
- बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के विकार का स्थाई समाधान होता है। 
- मासिक धर्म उचित समय पर आते है।
- वज़न सामान्य रहता है।
- त्वचा सामान्य रहती है। 

हमें क्यों चुनें और हम कैसे दूसरों से अलग है?
हम बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के 100 प्रतिशत प्रभावी जड़ी-बूटियों यानी हर्ब्स का उपयोग करते है। हम जो उपचार करते है उसके बाद विकार के दोबारा होने की संभावना नहीं होती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1-     इसका प्रयोग कोन करें?
जिनके चक्र से पहले या बाद में पतला, दूधिया, पीला स्राव आता हो।
जिनके अंतरंग क्षेत्र में खुजली, जलन और गंध आती हो।

 2-   खुराक और अवधि
       दिन में दो गोलियां । 

माइल्ड मामलों में : कम से कम 3 महीने की अवधि तक सेवन करें।
मॉडरेट मामलों में :  कम से कम 6 महीने की अवधि तक सेवन करें।
गंभीर मामलों में : कम से कम 10 से 12 महीने की अवधि तक सेवन करें।

3- किस प्रकार का डिस्चार्ज होना सामान्य होता है, क्या सफेद डिस्चार्ज सामान्य है?
हां, सफेद डिस्चार्ज होना सामान्य होता है। यह डिस्चार्ज मासिक धर्म के बाद (पीरियड के 14वें या 15वें दिन) होता है तो उसे सामान्य माना जाता है। यह ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमे योनि स्व-सफाई करती है। यदि आपका स्राव दही या पानी जैसा गाढ़ा हो या दूसरे दिनों में दुर्गंध युक्त हो तो इसे असामान्य माना जाता है।

4- क्या यह उत्पाद सुरक्षित और प्रभावी है?
        हां यह उत्पाद सौ प्रतिशत सुरक्षित और प्रभावी है। प्रकृति के अनुसार ही दवा का सेवन उचित आहार के साथ करना चाहिए।
 

5- क्या इन उत्पादों का कोई साइड इफ़ेक्ट है?
नहीं, हमारे उत्पादों का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है। यह सौ प्रतिशत सुरक्षित है। निर्धारित की गई खुराक के अनुसार ही दवा लेनी चाहिए।

अगर आपका कोई सवाल है या आप इस विकार से संबंधित किसी भी प्रकार का विवरण चाहते है, तो अभी हमारे विशेषज्ञों से संपर्क करें !

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