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icon-blog By - 19 Mar 2024

PCOD/PCOS

पीसीओडी/पीसीओएस (PCOD/PCOS) ग्रंथि

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (पीसीओडी) और पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक प्रकार का हार्मोनल विकार होता है। जिसमें छोटे-छोटे सिस्ट वाले बढ़े हुए अंडाशय होते है। इस स्थिति के होने के प्राथमिक कारकों में मुख्य रूप से इंसुलिन प्रतिरोध का होना, हार्मोन में असंतुलन का होना, आनुवंशिक यानी जेनेटिक गड़बड़ी का होना और निम्न स्तर की सूजन शामिल होती है।

दूसरी तरफ आयुर्वेद के अंतर्गत पीसीओएस को शरीर व ऊर्जा असंतुलन को मुख्य रूप से कफ दोष से संबंधित माना जाता है। प्राचीन भारतीय प्रणाली में पीसीओएस के होने का मुख्य कारण कफ, वात और पित्त दोषों में असंतुलन के होने को माना गया है। विषाक्त पदार्थों का संचय को आम के रूप में जाना जाता है। कमजोर पाचन क्षमता या अग्नि; को लाइफ स्टाइल व भावनात्मक तनाव से संबंधित माना गया है। आयुर्वेद के अंतर्गत इन असंतुलनों का प्रतिकार करने के लिए आहार में बदलाव, शतावरी और अशोक जैसे विशिष्ट हर्बल उपचार, पंचकर्म जैसे विषहरण उपचार और तनाव से राहत देने के लिए मेडिटेशन व योग की अनुशंसा की जाती है।

अवलोकन (OVERVIEW)
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (पीसीओडी) महिलाओं में प्रचलित एक हार्मोनल स्थिति होती है। आमतौर पर यह 15 से 44 वर्ष की महिलाओं में देखी जाती है। हैरानी की बात तो यह है कि अधिकतर महिलाओं को इसके होने की कोई जानकारी नहीं होती है। एक अनुमान के मुताबिक पीसीओएस से पीड़ित 70% महिलाओं का निदान ही नहीं हो पाता है।
इसकी पहचान एक प्रकार के जटिल अंतःस्रावी विकार ओव्यूलेशन (एनोव्यूलेशन) की अनुपस्थिति, मासिक धर्म संबंधी विसंगतियों और पुरुष हार्मोन के स्तर में वृद्धि से होती है। इसके लक्षणों में बांझपन व वजन बढ़ने से लेकर शरीर पर अतिरिक्त बाल (हिर्सुटिज़्म) और मुंहासे तक अलग-अलग हो सकते है।
प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति यानी आयुर्वेद के दृष्टिकोण से पीसीओएस/पीसीओडी को मुख्य रूप से कफ दोष में गड़बड़ी के रूप में देखा जाता है। हालांकि अन्य दो दोषों यानी वात और पित्त में भी असंतुलन देखा जा सकता है। नीचे इस बात पर एक संक्षिप्त परिप्रेक्ष्य दिया गया है कि आयुर्वेद के अंतर्गत पीसीओएस/पीसीओडी के उपचार को कैसे देखता है और कैसे अपनाता है।

इस रोग की विशेषता इस प्रकार है
- अंडाशय में सिस्ट हो जाता है। 
- महिलाओं को मासिक धर्म या तो आता नहीं है या फिर अनियमित रूप से आता है। 
- पुरुष हार्मोन का स्तर ऊंचा हो जाता है।
 

पीसीओएस/पीसीओडी में अंडाशय कई छोटे तरल पदार्थ से भरी थैली बनाते है जिन्हें सिस्ट कहा जाता है। "पॉलीसिस्टिक" शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है "कई सिस्ट।" प्रत्येक थैली या कूप में एक अपरिपक्व अंडा होता है। हालांकि ये अंडे ओव्यूलेशन को ट्रिगर करने के लिए पर्याप्त रूप से कभी भी परिपक्व नहीं होते है। ओव्यूलेशन की कमी से एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन, एफएसएच और एलएच के स्तर में बदलाव होता है। प्रोजेस्टेरोन के स्तर में गिरावट और एण्ड्रोजन के स्तर में वृद्धि के कारण पीसीओएस वाली महिलाओं को अक्सर सामान्य से कम मासिक धर्म चक्र का अनुभव होता है। बढ़े हुए पुरुष हार्मोन मासिक धर्म चक्र की नियमितता को बाधित करते है।

भारतीय चिकित्सा की प्राचीन प्रणाली आयुर्वेद के अंतर्गत स्वास्थ्य और बीमारियों का समग्र दृष्टिकोण प्रदान किया जाता है। पीसीओएस और पीसीओडी से सम्बंधित आयुर्वेद के अंतर्गत तीन प्राथमिक जीवन ऊर्जा या दोषों: वात, पित्त और कफ के संतुलन के आधार पर इन स्थितियों की व्याख्या करता है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण के अनुसार :

दोष असंतुलन (Dosha Imbalance)
- कफ दोष (Kapha Dosha): पीसीओएस/पीसीओडी मुख्य रूप से कफ असंतुलन के लिए जिम्मेदार होते है। कफ असंतुलन के लक्षणों में वजन बढ़ना, थकान और बलगम के उत्पादन में वृद्धि होना शामिल होते है। पीसीओएस के संदर्भ में यह असंतुलन अंडाशय में सिस्ट के गठन के रूप में प्रकट हो सकता है।
- वात दोष (Vata Dosha): वात में व्यवधान तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकता है। जिसके परिणामस्वरूप मासिक धर्म में अनियमितता, चिंता और सूखापन हो सकता है।

- पित्त दोष (Pitta Dosha): पित्त में असंतुलन होने से सूजन, अत्यधिक आंतरिक गर्मी और हार्मोनल असंतुलन हो सकता है। जिसके परिणामस्वरूप मुंहासे या त्वचा पर चकत्ते जैसे लक्षण हो सकते है।
- आम (Toxins): आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार बिना पचा आहार या विषाक्त पदार्थ जिन्हें "आम" कहा जाता है शरीर की नलिकाओं में जमा हो सकते है। यह संचय रुकावट पैदा कर सकता है जिससे संभावित रूप से सिस्ट का निर्माण हो सकता है। आम को पीसीओएस/पीसीओडी के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान कारक के रूप में देखा जाता है।

पीसीओडी/पीसीओएस एक मेटाबॉलिक सिंड्रोम होता है। पीसीओएस से पीड़ित लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं अधिक वजन वाली या मोटापे से ग्रस्त होती है। मोटापा और पीसीओएस दोनों ही निम्नलिखित जोखिम को बढ़ा सकते है
- हाई ब्लड शुगर। 
- हाई ब्लड प्रेशर। 
- कम एचडीएल यानी "अच्छा" कोलेस्ट्रॉल
- उच्च एलडीएल यानी "खराब" कोलेस्ट्रॉल
इन सभी कारकों को मिलकर मेटाबोलिक सिंड्रोम कहा जाता है।
 

लक्षण (SYMPTOMS)
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) के सबसे आम लक्षण इस प्रकार है। 
-  अनियमित मासिक धर्म: ओव्यूलेशन के बिना गर्भाशय की परत हर महीने नहीं निकलती है। जिसका परिणाम यह होता है कि पीसीओएस से पीड़ित कुछ महिलाओं को साल में आठ से कम मासिक धर्म चक्र का अनुभव होता है। ऐसा भी होता है कि कुछ महिलाओं को बिल्कुल भी मासिक धर्म नहीं होता है।
- भारी रक्तस्राव (हैवी ब्लीडिंग): चूंकि गर्भाशय की परत लंबे समय तक जमा रहती है इसलिए जो मासिक धर्म होता है वह सामान्य से अधिक हैवी हो सकता है। जिसके परिणामस्वरूप मासिक धर्म के दौरान अधिक ब्लीडिंग होती है। 
- बालों का बढ़ना: अमूमन ऐसा देखा जाता है कि 70% से अधिक प्रभावित महिलाओं को चेहरे, शरीर, पीठ, पेट और छाती सहित अन्य अंगों पर अत्यधिक बाल बढ़ाने या बालों के झड़ने का अनुभव होता है।
- मुहासे: बढ़े हुए पुरुष हार्मोन के कारण त्वचा तैलीय (ऑयली) हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप चेहरे, छाती और पीठ के ऊपरी हिस्से पर मुहासे हो सकते है।
- वजन बढ़ना: पीसीओएस से पीड़ित लगभग 80% महिलाएं अधिक वजन वाली या मोटापे से ग्रस्त होती है।
-  पुरुष पैटर्न गंजापन: सिर पर बाल पतले हो जाते है और झड़ भी सकते है।
- त्वचा का काला पड़ना: शरीर की सिलवटों जैसे गर्दन, कमर और स्तनों के नीचे काले धब्बे दिखाई दे सकते है।
- सिर दर्द: पीसीओएस से पीड़ित कुछ महिलाओं में हार्मोनल उतार-चढ़ाव के कारण सिर दर्द हो सकता है।

कारक (FACTORS)
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (पीसीओडी) एक बहुक्रियात्मक स्थिति होती है जो कई योगदान कारकों और पोटेंशियल ट्रिगर से प्रभावित होती है।
पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं की एक बड़ी संख्या में इंसुलिन प्रतिरोध होता है जिससे उनकी कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति कम प्रतिक्रियाशील हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि इंसुलिन का उत्पादन बढ़ सकता है जिससे अंडाशय में एण्ड्रोजन (पुरुष हार्मोन) का उत्पादन बढ़ जाता है और यह सामान्य मासिक धर्म चक्र को बाधित करने लगता है। एण्ड्रोजन का स्तर ऊंचा होने पर शरीर पर बालों का बढ़ना (हिर्सुटिज़्म) और मुंहासे जैसे लक्षण पैदा हो सकते है। इसका एक संभावित आनुवंशिक संबंध भी है क्योंकि जिनके परिवार में किसी को यह विकार होता है जैसे पीसीओएस वाली मां या बहन उनमें यह जोखिम बढ़ सकता है। हालांकि इसके साथ जुड़े हुए विशिष्ट जीन अज्ञात रहते है।

पीसीओएस से पीड़ित कई महिलाओं में सूजन का स्तर बढ़ जाता है जो इंसुलिन प्रतिरोध से जुड़ा हो सकता है। आमतौर पर अधिक वजन होना पीसीओएस से जुड़ा होता है जो इसके लक्षणों को बढ़ाता है जिससे इंसुलिन और सूजन के स्तर को बढ़ता है। ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच) और फॉलिकल-स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच) जैसे हार्मोनल असंतुलन भी मासिक धर्म चक्र और ओवेरियन फॉलिकल फार्मेशन को बाधित कर सकता है। पर्यावरण से सम्बंधित विषाक्त पदार्थ, आहार, तनाव और यहां तक कि जन्म के समय कम वजन जैसे कारकों को भी पीसीओएस की शुरुआत व तीव्रता से जोड़ा गया है।
प्राचीन भारतीय प्रणाली यानी आयुर्वेदिक दृष्टिकोण के अंतर्गत रोग का विकास अक्सर शरीर के दोषों (जीवन ऊर्जा) और विष संचय में असंतुलन से संबंधित होता है। आयुर्वेद के अनुसार पीसीओएस/पीसीओडी मुख्य रूप से कफ असंतुलन से उत्पन्न होता है। जिससे वजन बढ़ना, सुस्ती, बलगम उत्पादन में वृद्धि और अंडाशय में सिस्ट का निर्माण हो सकता है। इसके अतिरिक्त बढ़ा हुआ वात भी मासिक धर्म चक्र की नियमितता को प्रभावित कर सकता है और तनाव व चिंता तंत्रिका तंत्र संबंधी विकारों को ट्रिगर कर सकता है। जबकि असंतुलित पित्त सूजन, हार्मोनल समस्याएं और मुंहासे जैसे लक्षण पैदा कर सकता है।

आयुर्वेद पीसीओएस/पीसीओडी में अपूर्ण पाचन से उत्पन्न होने वाले "आम" या विषाक्त पदार्थों की भूमिका पर भी जोर देता है। यह संचय शरीर के चैनलों को अवरुद्ध कर सकता है, पोषण को रोक सकता है और डिम्बग्रंथि अल्सर (ओवेरियन सिस्ट्स) का कारण बन सकता है। इसके अलावा खराब आहार और अनियमित खान-पान जैसे कारकों के कारण अक्रियाशील अग्नि (डाइजेस्टिव फायर) के कारण इस विष का संचय हो सकता है। लाइफ स्टाइल से जुड़े तत्व जैसे गतिहीन व्यवहार, प्रसंस्कृत आहारका सेवन, तनाव और अपर्याप्त नींद भी दोषों को अधिक परेशान कर सकते है जिससे संभावित रूप से पीसीओएस हो सकता है। इसमें भावनात्मक कारक भी भूमिका निभाते है जैसे  लंबे समय तक गुस्सा या तनाव जैसी पुरानी भावनाएं हार्मोनल संतुलन को प्रभावित कर सकती है। अंत में, पर्यावरणीय कारक जैसे प्रदूषकों के संपर्क में आना, मौसमी परिवर्तन, कभी-कभी शरीर के संतुलन को बिगाड़ सकते है जिससे पीसीओएस/पीसीओडी की शुरुआत या गंभीरता प्रभावित हो सकती है।

उपचार (TREATMENT)
हालांकि देखा जाए तो पीसीओएस के सामान्य उपचार के दौरान जन्म नियंत्रण गोलियां, मेटफॉर्मिन जैसी टाइप 2 डायबिटीज की दवा, क्लोमीफीन जैसी प्रजनन दवाएं, बाल हटाने की दवाएं और कई मामलों में सर्जरी की भी आवश्यकता हो सकती है। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि इसके कभी-कभी दुष्प्रभाव भी हो सकते है। आयुर्वेद के अंतर्गत उपचार का एक सम्पूर्ण विकल्प प्रदान किया गया है।  

पीसीओएस/पीसीओडी के लिए आयुर्वेदिक उपचार का दृष्टिकोण (Ayurvedic Treatment Approach for PCOS/PCOD)

आयुर्वेद एक व्यापक चिकित्सा प्रणाली है जो शरीर और दिमाग के बीच सामंजस्य पर जोर देती है। यह सुझाव देता है कि ब्रह्मांड में पांच तत्व शामिल हैं: वायु (air), जल (water), आकाश (space), तेज (fire), और पृथ्वी (earth)। तीन दोष से ये तत्व ऊर्जा रूप बनाते है जो विशिष्ट शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते है। सहस्राब्दियों से प्रचलित आयुर्वेदिक आहार आपके प्रमुख दोष की पहचान करने और तीनों दोषों को संतुलित करने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन पर केंद्रित है।

आहार और लाइफस्टाइल में बदलाव: आयुर्वेदिक चिकित्सा संतुलित आहार की अनुशंसा करते है। जिसमें भारी और तैलीय (ऑयली) खाद्य पदार्थों (जो कफ को बढ़ा सकते है) को कम करना पर बल दिया जाता है। वजन को प्रबंधित करने और हार्मोनल संतुलन के लिए नियमित व्यायाम विशेष रूप से योग की सलाह दी जाती है। इसमें आहार ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज लेने पर ज़ोर देता है और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, डेयरी और मिठाई के लेने सें परहेज करता है।
 

पीसीओएस के उपचार में आहार कैसे सहायता करता है? (How Does Diet Aid in PCOS Treatment?)
कई पीसीओएस रोगियों में इंसुलिन का स्तर बढ़ा हुआ दिखाई देता है। अग्न्याशय द्वारा उत्पादित इंसुलिन ग्लूकोज को ऊर्जा में परिवर्तित करने की सुविधा प्रदान करता है। यदि किसी में इंसुलिन प्रतिरोध होता है तो ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रण में रखने के लिए शरीर इंसुलिन का अधिक उत्पादन कर सकता है। अतिरिक्त इंसुलिन अंडाशय को टेस्टोस्टेरोन जैसे अधिक एण्ड्रोजन का उत्पादन करने के लिए प्रेरित कर सकता है। पीसीओएस पीड़ितों के लिए उच्च बॉडी मास इंडेक्स के साथ इंसुलिन प्रतिरोध चुनौतीपूर्ण हो सकता है। जिससे वजन कम करना और भी कठिन हो जाता है।

आयुर्वेदिक आहार व्यक्ति के दोष या शरीर के प्रकार के आधार पर आहार का सेवन निर्धारित करता है जिसका लक्ष्य आंतरिक संतुलन विकसित करना होता है। तीनों दोषों या प्रकृति वाले लोगों को मीठा और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए इसके बजाय पौष्टिक, प्राकृतिक खाद्य पदार्थों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

हर्बल उपचार: आमतौर पर शतावरी, अशोक, कांचनार गुग्गुल, दशमूल और लोध्र जैसी सुझाई जाने वाली जड़ी- बूटियां प्रजनन स्वास्थ्य में मदद करती है। साथ ही साथ ये हार्मोन को संतुलित करती है, रक्त को शुद्ध करती है, कफ दोष को भी संतुलित करती है, पिट्यूटरी ग्रंथि के कार्यों को सामान्य करती है और सिस्ट को कम करती है।

हमारी उपयोग की जाने वाली प्रभावी और शुद्ध जड़ी-बूटिया इस प्रकार है (OUR EFFECTIVE AND PURE HERBS USED ARE)
1. अशोक (ASHOKA)
आयुर्वेद के अनुसार गुण-
लघु, रुक्ष 
रस (स्वाद)-कषाय, तिक्त,
वीर्य (शरीर पर प्रभाव)-शीत 
विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव)-कटु
यह गर्भाशय को मजबूत करता है और डिम्बग्रंथि (ओवेरियन) समारोह को उत्तेजित करता है। स्वस्थ मासिक धर्म प्रवाह को विनियमित करने में मदद करता है। मासिक धर्म चक्र के दौरान पेट में दर्द और ऐंठन को कम करता है।
दोषों पर प्रभाव - दूषित वात और पित्त दोष को शांत करता है। 

1. लोधरा (LODHRA)
आयुर्वेद के अनुसार गुण-रुक्ष, लघु, रस (स्वाद)-कषाय, वीर्य (शरीर पर प्रभाव)-शीत, विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव)-कटु। 
यह पीसीओएस में डिम्बग्रंथि कोशिका की शिथिलता को रोकता है। प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन स्तर के बीच अनुपात को बनाए रखकर मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करता है। गर्भाशय की सूजन का उपचारकरने में मदद करता है और प्रजनन क्षमता में सुधार करता है।
दोषों पर प्रभाव - दूषित वात और पित्त दोष को शांत करता है। 

1. शतावरी (SHATAVARI)
आयुर्वेद गुरु स्निग्धा के अनुसार गुण (Properties)।
रस (स्वाद)-मधुर, तिक्त, वीर्य (शरीर पर प्रभाव)- शीत, विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव)- मधुर
इसमें एंटीऑक्सीडेंट, कामोत्तेजक, गर्भाशय टॉनिक और एडाप्टोजेन गुण होते है।
दोषों पर प्रभाव - दूषित वात और पित्त दोष को शांत करता है।

1.कांचनार (KANCHANAR)
आयुर्वेद के अनुसार गुण (Properties) लघु, रस (स्वाद) - कषाय, वीर्य (शरीर पर प्रभाव) - शीत, विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव) - कटु । 
यह प्रकृति में ग्राही (स्राव को कम करने वाला), गाढ़ा करने वाला (भूख बढ़ाने वाला), रक्तपित्तहर (रक्तस्राव विकारों में उपयोगी), गण्डमाला नाशक (गांठ, सिस्ट, सूजन, फाइब्रॉएड के उपचारके लिए उपयोगी) है।

दोषों पर प्रभाव - दूषित वात और कफ दोष को शांत करता है। 

1.दशमूल (DASHMOOL)
आयुर्वेद के अनुसार गुण (Properties) लघु, रस (स्वाद) - मधुर, वीर्य (शरीर पर प्रभाव) - उष्ण, विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव) - मधुर। 
इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट, एनाल्जेसिक, पाचन और मेटाबॉलिज्म को ठीक करने वाले गुण होते है। यह मांसपेशियों की ताकत में सुधार करता है। हड्डियों और जोड़ों को मजबूत बनाता है और सभी दर्द विकारों पर काम करता है।
दोषों पर प्रभाव - दूषित वात दोष को शांत करता है

1. शिवलिंगी (SHIVLINGI)
आयुर्वेद के अनुसार गुण (Properties) लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, रस (स्वाद) - कटु, तिक्त, वीर्य (शरीर पर प्रभाव) - उष्ण, विपाक (पाचन के बाद शरीर पर प्रभाव) - कटु।
यह गर्भाशय टॉनिक के रूप में काम करता है। बांझपन से पीड़ित महिलाओं में गर्भधारण की संभावना को बढ़ाता है। साथ ही साथ अंडे की गुणवत्ता को भी बढ़ावा देता है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-फंगल, एंटी माइक्रोबियल, एनाल्जेसिक, एंटी-हाइपरलिपिडेमिया और एंटीपयरेटिक गुण होते है।
दोषों पर प्रभाव - खराब कफ दोष को शांत करता है
और 28 प्रकार की अन्य शुद्ध जड़ी-बूटियां इसमें शामिल है।

परिणाम और प्रभाव में तेजी लाने के लिए और क्या किया जा सकता है (What else can be done to accelerate results and effect)
एक अध्ययन के अनुसार 12 सप्ताह तक योग करने से पीसीओएस और पीसीओडी के लक्षणों वाली महिलाओं को काफी लाभ हुआ।
योग के कुछ आसन जो इन विकारों को ठीक करने में मदद कर सकते है :
- सुप्त बद्धकोणासन (रिक्लाइनिंग बटरफ्लाई पोज़)
- भारद्वाजसन (भारद्वाज ट्विस्ट)
- चक्की चलनासन (मिल चर्निंग पोज़)

पंचकर्म (Panchakarma): यह विषहरण यानी डेटॉक्सिफिकेशन प्रक्रिया व्यक्ति के अनुरूप विरेचन (प्यूरिफिकेशन थेरेपी) और बस्ती (मेडिकेटेड एनीमिया) जैसी उपचारके साथ दोषों को संतुलित कर सकती है।
तनाव का प्रबंधन (Stress Management): तनाव को कम करने के लिए ध्यान प्राणायाम (सांस लेने के व्यायाम) का सुझाव दिया जाता है जो हार्मोनल असंतुलन का एक प्रमुख कारण होता है।
 
सफलता दर (SUCCESS RATE)
आयुर्वेद इस विकार से संबंधित मामलों में सौ प्रतिशत सफलता दर देता है। आमतौर पर सफलता दर की अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि रोगी के शरीर की संरचना और यदि व्यक्ति सह-रुग्णताओं (comorbidities) से पीड़ित है के अनुसार अलग-अलग हो सकती है।

उपचार के बाद आप क्या अपेक्षा कर सकते है ? (WHAT TO EXPECT AFTER TREATMENT)
हमारा उपचार करने का तरीका न केवल आपके लक्षणों को कम करेगा और बीमारी को ठीक करेगा बल्कि आपके सम्पूर्ण स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाने में मदद करेगा। उपचार के बाद आप अपने आत्मविश्वास को बढ़ावा पाएंगे जिससे आपके मिजाज़ और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा।

हमें क्यों चुनें और हम कैसे दूसरों से अलग है ? (WHY CHOOSE US AND HOW WE ARE DIFFERENT?)
हमारे प्रोडक्ट सम्पूर्ण  प्रजनन स्वास्थ्य पर काम करता है जैसे-
1-ओज (OJA) / शुक्र धातु सुधार।
 2- पाचन और मेटाबॉलिज्म में सुधार।
 3-आम को अंडाशय से निकालना। 
 4-अंडाशय के फंक्शन में सुधार (अंडे का विकास और ओव्यूलेशन)
5- इंसुलिन प्रतिरोध (रेजिस्टेंस) से रिकवरी। 
6- डिम्बग्रंथि अल्सर (ओवेरियन सिस्ट्स) का विघटन। 
7- हार्मोन संतुलन। 
8-गर्भाशय टोनिंग। 
9- प्रजनन क्षमता में सुधार। 

हम सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ पर काम करते है। हम ऐसी जड़ी-बूटियों का प्रयोग करते है जो सौ प्रतिशत प्रभावी होती है व जिनका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है। आप हमारे आयुर्वेदिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से पहला परामर्श निःशुल्क प्राप्त कर सकते है। आपको आपकी प्रकृति के अनुसार एक निःशुल्क आहार चार्ट, लाइफ स्टाइल में परिवर्तन के दिशा-निर्देश साथ ही साथ उपचार के दौरान हमारे विशेषज्ञ का पूर्ण समर्थन मिलता रहेगा।
 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. पीसीओडी और पीसीओएस दोनों के बीच अंतर कैसे करें? (How to differentiate between PCOD and PCOS ?)

पीसीओडी : पीसीओडी एक ऐसी स्थिति होती है जिनमें अंडाशय बहुत से अपरिपक्व या आंशिक रूप से परिपक्व अंडे का उत्पादन करते है। यह खराब जीवनशैली, मोटापा, तनाव और हार्मोनल असंतुलन के कारण होता है। इसके सामान्य लक्षण इस प्रकार है।
- अनियमित मासिक धर्म रक्तस्राव का होना। 
- यह उस समय शुरू हो सकता है जब लड़की को मासिक धर्म शुरू होता है। 
- अधिक टेस्टोस्टेरोन-पुरुष हार्मोन (एण्ड्रोजन) के कारण स्तन का आकार कम होना। 
- मुंहासे व फुंसी का होना। 
- हार्मोनल गड़बड़ी होना। 
- सिस्ट बन जाता है।

पीसीओएस : पीसीओएस एक मेटाबोलिक विकार है। यह पीसीओडी का अधिक गंभीर रूप एनोव्यूलेशन का कारण बन सकता है। यह ऐसी स्थिति होती है जहां अंडाशय अंडे जारी करना बंद कर देते है। इसके सामान्य लक्षण इस प्रकार है।
- अनियमित मासिक धर्म रक्तस्राव का होना। 
- मासिक धर्म किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है।
- छाती, ऊपरी होंठ, ठुड्डी, पेट, पीठ पर बालों का बढ़ना। 
- मुंहासे व फुंसी का होना। 
- हार्मोनल गड़बड़ी होना।
- इंसुलिन प्रतिरोध का होना। 
- कभी-कभी सिस्ट दिखाई नहीं देते है। 
 

2. क्या हम एएमएच (एंटी-मुलेरियन हार्मोन) के मान में सुधार कर सकते है?
हां, प्रकृति परीक्षण और उचित आहार चार्ट के बाद दिन में दो बार एक गोली लें।

3. प्रजनन क्षमता कैसे सुधारें?
दिन में एक बार (रात में) 2 गोलियां 1 गिलास A2 गाय के दूध के साथ लें और अपनी प्रकृति के अनुसार आहार का पालन करें।

4. क्या फाइब्रॉएड का उपचार किया जा सकता है?
हां, उचित आहार, दवा और लाइफस्टाइल से इसका उपचार किया जा सकता है। व्यक्तिगत प्रकृति परीक्षण एवं उपचारके लिए परामर्श हेतु हम से जुड़ सकते है।

5. अनियमित मासिक धर्म का उपचार कैसे करें?
आहार के आधे घंटे पहले 2 गोलियां दिन में दो बार आंवले के रस/त्रिफला गुनगुने पानी के साथ उचित प्रकृति आहार के साथ लें।

6. मासिक धर्म की ऐंठन का उपचार कैसे करें और चक्र को नियमित कैसे करें?
उचित प्रकृति आहार के साथ एक गोली दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ लें।

7. अत्यधिक मासिक धर्म रक्तस्राव को कैसे कम करें?
एक गोली दिन में दो बार आहार के बाद छाछ के साथ लें और प्रकृति के अनुसार उचित आहार लें।

8. हार्मोनल गड़बड़ी, मूड में बदलाव, ऐंठन, बेचैनी, मतली, बुखार, गर्म फ्लश, ठंड लगना आदि का उपचार कैसे करें?
एक गोली दिन में दो बार आहार के आधे घंटे बाद गुनगुने पानी के साथ लें।
 

9. उपचार में कितना समय लगेगा?
इसके उपचार में कम से कम 3 महीने लगेंगे और लक्षण, प्रकृति और बीमारी के अनुसार यह समय अलग-अलग हो सकते है। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारे स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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